Friday, April 9, 2010

हिंदी हैं हम -----

जीवन को सँवार लूं
भूलों को सुधार लूं
मन में रहती छोटी-सी एक आशा
हर भाषा का आदर करूँ
हर एक को मैं प्यार करूँ
सबसे ऊपर अपनी राष्ट्र भाषा .

मैं भारत देश का वासी हूँ
संविधान का विश्वासी हूँ
सबका धर्म सबकी भाषा सब हैं मेरे यार
हर एक प्रान्त इस देश का
हर जाति हर वेश का
हिंदी मिलन की सेतु है
सबमे बांटती प्यार .

ठण्ड हिमालय, घंच वनानी
थर मरुस्थल, समुद्र पानी
ये सब एक एक फूल है उस माला का
हिंदी जिसका धागा है
मिठास में जिसके जागे हैं
हर मृत ,हर सोई संतान
फिर से भारत देश का

हिंदी है हम इसमे कोई लज्जा नहीं
राज-भाषा हिंदी हमारी इसमे कोई शंका नही
सीखेंगे हम सबकी भाषा
घूमते रहेंगे चारों दिशा
हिंदी सबको सिखायेंगे
राष्ट्र-भाषा हिंदी कहकर गर्व से सीना तानेंगे
गर्व से सीना तानेंगे

5 comments:

  1. आपके द्वारा लिखी हुई कविता " हिंदी है हम ..." न केवल देश प्रेम की भाषा से ओत -प्रोत है वरन आपके हृदय की विशालता का भी परिचयाक है .जहाँ हिन्दुस्तान में क्षेत्रीय भाषाओँ के लेकर कई विवाद पैदा हो रहे है , वहा आपकी यह कविता लोगो को जोड़ने का प्रयास करेगी तथा लोगों के दिल से तुच्छ भावना को उखाड़ फेकेंगी .
    बहुत बहुत धन्यवाद अनिल जी .आपका ब्लॉगिंग की दुनिया में स्वागत है . बस, अपनी रचनायों को ब्लॉग पर जारी रखियेगा ..

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  2. Great,Keep it up. Hope, will see more stuffs.

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  3. अनिल दाश की सोच वर्तमान दौर की भाषा की क्षेत्रीय- संकीर्णता से ऊपर है
    राष्ट्र-भाषा के प्रति सम्मान एक सुलझे विचार का परिचायक है .
    बहुत बहुत बधाई ,आपकी और कविताओं की प्रतीक्षा में

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  4. बधाई । कविता की भाव-भंगिमा अच्छा है। आप चाहें तो यहाँ के लिए भी लिख सकते हैं । शुभकामनाओं सहित...

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  5. Hi Anil, it's great to see your blog. Why don't you create another blog for your Odia poems? You know, now it i also easier to create Odia blog in Blogspot. However, I appreciate your blogging.

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